पूजन में ध्यान देने योग्य बातें
१ . अशुद्ध वस्त्रों में अष्ट द्रव्य से पूजन नहीं करना चाहिए । अर्थात् शुद्ध धोती - दुपट्टा पहनकर
पूजा करना चाहिए ।
२ . अष्ट द्रव्य को प्रासुक ( गर्म ) जल से धोकर ही पूजन करना चाहिए ।
३ . पूजन सिर ढ़ककर करना चाहिये , एवं पूजन में द्रव्य हमेशा दोनों हाथों से चढ़ाना चाहिए ।
४ . पूजन करते समय इधर - उधर कहीं नहीं जाना चाहिए ।
५ . पूजन में आकुलता नहीं होना चाहिए ।
६ . पूजन करते समय यदि कोई विपरीत स्थिति भी आ जाये तो भी मौन रहना चाहिए ।
७ . पूजन करते समय जिनवाणी को पैर आदि नाभि के नीचे स्थान पर न रखें ।
८ . पूजन करते समय जिनवाणी के अन्दर चावल आदि न डालें व पेज आदि न मोडे एवं जिस
स्थान से उठायें वहीं पर पूजन के बाद व्यवस्थित रखें ।
९ . जिनवाणी के पन्नों को थूक लगाकर न पलटें ।
१० . पूजन करते समय हँसी - मजाक व घर गृहस्थी की बातें न करें ।
११ . पूजन करनेवाला व्यक्ति सप्त व्यसन का त्यागी एवं अष्ट मूलगुणोंका धारी होना चाहिये ।
१२ . फटे वस्त्रों में तथा मेले वस्त्रों में पूजन न करें यदि नवीन वस्त्र भी फट जायें तो भी उन
वस्त्रों में पूजन न करें ।
१३ . पूजन के वस्त्रों से भोजन एवं भोजन किये हुये वस्त्रों से भी पूजन न करें ।
१४ . पूजन धोती दुपट्टा में ही करें ।
पूजा सम्बन्धी सावधानियाँ
१ . नित्यपूजा प्रातः काल में ही करना चाहिए ।
२ . शुद्ध वस्त्रों में व शुद्ध सामग्री से ही पूजा करें ।
3 . शुद्ध वस्त्रों में ही गर्भगृह में प्रवेश करें ।
4 . अभिषेक पूर्वक ही पूजा करें ।
५ . थाली , टोना एवं पूजा के बर्तनों में स्वस्तिक अंकित करें ।
६ . यदि श्री जी पूर्व मुख हों तो उत्तर दिशा की ओर मुख करके और श्री जी उत्तरमुख
हों तो पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए । आमने सामने खड़े होने पर
दिशा का दोष नहीं होता है ।
७ . पूजन जमीन पर खड़े होकर न करें । चटाई या आसन पर खड़े होकर ही पूजन करें अथवा बैठकर करें ।
८ . आह्वान , स्थापन , सन्निधिकरण , पूजन , विसर्जन सभी क्रियायें विधिपूर्वक सम्पादित
करनी चाहिये । इनको छोड़कर पूजा करने से पूजा अधूरी होती है ।
पूजा - काले , फटे , पुराने वस्त्रों में नहीं करना चाहिए ।
९ . पूजा होने तक मन , वचन , काय की प्रवृत्ति स्थिर रखें अर्थात् बार - बार आसन नबदलें ।
१० . जल , चंदन आदि पूजा द्रव्य को शुद्धोच्चारण के साथ भावपूर्वक चढ़ायें ।
११ . पूजा इस प्रकार से पढ़े कि उसका अर्थाभास हो , अत्यन्त शीघ्रता से पूजन न पढ़े ।
१२ . पूजा मध्यम स्वर में पढ़े जिससे अन्य लोगों को व्यवधान न हो ।
१३ . पूजा करते समय आपस में वार्तालाप न करें ।
१४ . पूजा की पुस्तक में से चावल आदि निकालकर विनय पूर्वक यथास्थान रखें ।