पाठ - 11 आहार दान विधि निज और पर के कल्याण के लिये , ' मुनि , आर्यिका , श्रावक , श्राविका को , चार प्रकार का दान देना दान कहलाता है । दान के चार भेद हैं - आहार दान , औषधि दान , ज्ञान दान तथा अभय दान । दान से पाप कर्म नष्ट होते हैं । पाप कर्म नष्ट होने से धर्म की ओर बढ़ते हैं और धर्म करने से ही संसार में शान्तिपूर्वक जीवन जिया जा सकता है । धर्म के बिना हमारा जीवन पशु के समान है । चार प्रकार के दान देने वाले व्यक्ति , भोगभूमि के सम्पूर्ण सुखों को भोगते हुए परम्परा से मोक्ष प्राप्त करते हैं । । दान की विशेषता - दान , देने की विधि , उत्तम वस्तु , श्रद्धादि गुणयुक्त दाता एवं पात्रता पर निर्भर है । आचार्यों ने दान देने योग्य उत्तम , मध्यम एवं जघन्य तीन पात्र बताये हैं । जिसमें उत्तम पात्र दिगम्बर साधु मुनिराज ही हैं । व्रती सम्यग्दृष्टि मनुष्यों को मध्यम पात्र कहते हैं । सम्यग्दृष्टि अव्रती मनुष्यों को जघन्य पात्र कहते हैं । साधु श्रावक से धर्म साधन के लिए , क्षुधा का उपशमन करने के लिये तथा मोक्ष की यात्रा के साधन हेतु आहार लेते हैं । आहार चाहे मुनि , आर्यिका , ऐलक , क्षुल्लक , ब्रह्मचारी एवं ब्रह्मचारिणी जिस किसी को भी शुद्ध मन , वचन , काय से दिया जाय , तभी उसका योग्य फल मिलता है । मुनिराज को आहार , आठ वर्ष की आयु के बाद बालक , बालिका , युवा , वृद्ध , स्त्री , पुरुष , जैन श्रावक दे सकता है । आहार विधि इस प्रकार से है पड़गाहन विधि 1 . मनियों के लिए पड़गाहन विधि : - हे स्वामिन् ! नमोऽस्तु - नमोऽस्तु - नमोऽस्तु , अत्र , तिष्ठ - तिष्ठ तिष्ठ , आहार , जल शुद्ध है । 2 . आर्यिकाओं के लिए पड़गाहन विधि : - हे माताजी ! वन्दामि - वन्दामि - वन्दामि , अत्र , तिष्ठ - तिष्ठ तिष्ठ , आहार जल शुद्ध है । 3 . क्षुल्लक / ऐलक के लिए पड़गाहन विधि : - हे स्वामिन् ! इच्छामि , इच्छामि , इच्छामि , अत्र , तिष्ठ तिष्ठ - तिष्ठ , आहार जल शुद्ध है । पड़गाहन के बाद शुद्धि मुनि महाराज की विधि मिलने के बाद , जब आपके सामने खड़े हो जाते हैं तब तीन प्रदक्षिणा देना चाहिए उसके बाद नमोऽस्तु महाराज ! मनशुद्धि , वचनशुद्धि , कायशुद्धि , आहार जल शुद्ध है , गृह प्रवेश कीजिए " ऐसा कहना चाहिए । _ _ माताजी के लिए वन्दामि एवं ऐलक - क्षल्लक जी के लिए इच्छामि कहना चाहिए भोजनशाला के द्वार पर गरम पानी से अपने पैर अच्छी तरह धोकर महाराज जी को भोजनशाला में प्रवेश करने के लिए प्रार्थना करें । पुनः हे महाराज जी ! नमोऽस्तु , उच्चासन पर विराजमान होइये , ऐसा कहें । । आसन पर विराजमान होने के बाद थाली में मुनि महाराज जी के पैर गरम पानी से धोए । फिर इस प्रकार अष्ट द्रव्य से पूजा करें ।
गाजा विधि - आह्वानन - “ हे मुनिराज अत्र अवतर , अवतर , अवतर , अत्र तिष्ठ , तिष्ठ , तिष्ठ , अत्र ममा भव भव , वषट् सन्निधिकरण " ऐसा कहकर पुष्प क्षेपण करें । फिर अष्ट द्रव्यों के अर्घ बोलकर मुनिराज । को नमस्कार करें । आहार दान के लिए शुद्धि - चौके में बनाई हुई समस्त वस्तुओं को एक थाली में थोड़ी - थोड़ी लगाकर के सामने लावें और एक - एक वस्तु का नाम बतावें . फिर मुनिराज जिसे निकलवाये उसे थाली में से अलग लेना चाहिए । इसके बाद हे स्वामिन् ! नमोऽस्तु मन शुद्धि , वचन शृद्धि , काय शुद्धि , आहार जल शुद्ध है । मुद्रा कीटकर अंजली बांधकर भोजन ग्रहण कीजिए । फिर नमोऽस्त करें । फिर महाराज के हाथ धलावें । महाराज जी के खडे होकर भक्ति बोलने के बाद पहले पानी दें । साधु की प्रकृति पर भी ध्यान देते हुए आहार करायें । आहार दान का फल - आत्म - विशुद्धि , धर्मप्रेम , गुरु - सेवा , पाप का नाश , पुण्य की प्राप्ति , यश की प्राप्ति और अन्त में मोक्ष प्राप्ति आहार दान का फल है । अन्तराय - केश ( बाल ) , मरा हुआ जीव , सचित्त बीज , नाखन , चर्म , रक्त , मांस आदि के आहार में आने पर और रास्ते में मांस , शव देखने पर , जीव मरने पर , मांस भक्षी पशु चौके में आ जाने पर , स्त्री के छूने पर , बरतन गिरने पर , मनुष्य को चक्कर आकर गिरने पर , छोड़ी हुई चीज एवं अभक्ष्य भक्षण होने पर , अग्निदाह होने पर , करुण रोने की आवाज सुनने पर , दूसरों की मार - काट आदि कठोर शब्द सनने पर तथा और भी अनेक कारणों से भोजन में अन्तराय हो जाता है । आहार की वस्तुओं की मर्यादा सामग्री वर्षा ऋतु शीत ऋतु ग्रीष्म ऋतु 1 . दलिया , रवा , आटा , मैदा , मिर्च ( मसाला ) , 3 दिन 5 दिन 7 दिन लाई आदि कुटे व गर्म किये । 2 . मिठाई , खोवा , पेड़ा , बर्फी , लड्डु 1 दिन 1 दिन 1 दिन 3 . बूरा , बतासा 15 दिन 30 दिन 4 . पापड़ , बड़ी , सेमइ , पूरी , पराठा , हलुवा 12 घण्टे 12 घण्टे 12 घण्टे 5 . सेव , बूंदी , तेल आदि से तले पदार्थ , आचार , 24 घण्टे 24 घण्टे 24 घण्टे मुरब्बा , दही , मट्ठा । 6 . खिचडी , दाल , भात , कढ़ी , रोटी 6 घण्टे 6 घण्टे 6 घण्टे 7 . घी , तेल 1 वर्ष 1 वर्ष 1 वर्ष 8 . सैंधा नमक ( पिसा हुआ ) 48 मिनट 48 मिनट 48 मिनट 9 . ( प्रसूत ) बकरी , भेड़ का दूध 8 दिन बाद शुद्ध होता है । ( प्रसूत ) भैंस का दूध 15 दिन बाद शुद्ध होता है । ( प्रसूत ) गाय का दूध 10 दिन बाद शुद्ध होता है । अभ्यास प्रश्न 1 . दान की परिभाषा लिखिए । 2 . नवधा भक्ति के नाम बताइए । 3 . आहार दान का फल क्या है ? 4 . अन्तराय किस - किस कारणों से होता है ? 5 . आहार दान देने वालों की शुद्धि किस प्रकार होती है ? Aryan 6 दिन कलराव्य ( 47 ) पलायल्य
गाजा विधि - आह्वानन - “ हे मुनिराज अत्र अवतर , अवतर , अवतर , अत्र तिष्ठ , तिष्ठ , तिष्ठ , अत्र ममा भव भव , वषट् सन्निधिकरण " ऐसा कहकर पुष्प क्षेपण करें । फिर अष्ट द्रव्यों के अर्घ बोलकर मुनिराज । को नमस्कार करें । आहार दान के लिए शुद्धि - चौके में बनाई हुई समस्त वस्तुओं को एक थाली में थोड़ी - थोड़ी लगाकर के सामने लावें और एक - एक वस्तु का नाम बतावें . फिर मुनिराज जिसे निकलवाये उसे थाली में से अलग लेना चाहिए । इसके बाद हे स्वामिन् ! नमोऽस्तु मन शुद्धि , वचन शृद्धि , काय शुद्धि , आहार जल शुद्ध है । मुद्रा कीटकर अंजली बांधकर भोजन ग्रहण कीजिए । फिर नमोऽस्त करें । फिर महाराज के हाथ धलावें । महाराज जी के खडे होकर भक्ति बोलने के बाद पहले पानी दें । साधु की प्रकृति पर भी ध्यान देते हुए आहार करायें । आहार दान का फल - आत्म - विशुद्धि , धर्मप्रेम , गुरु - सेवा , पाप का नाश , पुण्य की प्राप्ति , यश की प्राप्ति और अन्त में मोक्ष प्राप्ति आहार दान का फल है । अन्तराय - केश ( बाल ) , मरा हुआ जीव , सचित्त बीज , नाखन , चर्म , रक्त , मांस आदि के आहार में आने पर और रास्ते में मांस , शव देखने पर , जीव मरने पर , मांस भक्षी पशु चौके में आ जाने पर , स्त्री के छूने पर , बरतन गिरने पर , मनुष्य को चक्कर आकर गिरने पर , छोड़ी हुई चीज एवं अभक्ष्य भक्षण होने पर , अग्निदाह होने पर , करुण रोने की आवाज सुनने पर , दूसरों की मार - काट आदि कठोर शब्द सनने पर तथा और भी अनेक कारणों से भोजन में अन्तराय हो जाता है । आहार की वस्तुओं की मर्यादा सामग्री वर्षा ऋतु शीत ऋतु ग्रीष्म ऋतु 1 . दलिया , रवा , आटा , मैदा , मिर्च ( मसाला ) , 3 दिन 5 दिन 7 दिन लाई आदि कुटे व गर्म किये । 2 . मिठाई , खोवा , पेड़ा , बर्फी , लड्डु 1 दिन 1 दिन 1 दिन 3 . बूरा , बतासा 15 दिन 30 दिन 4 . पापड़ , बड़ी , सेमइ , पूरी , पराठा , हलुवा 12 घण्टे 12 घण्टे 12 घण्टे 5 . सेव , बूंदी , तेल आदि से तले पदार्थ , आचार , 24 घण्टे 24 घण्टे 24 घण्टे मुरब्बा , दही , मट्ठा । 6 . खिचडी , दाल , भात , कढ़ी , रोटी 6 घण्टे 6 घण्टे 6 घण्टे 7 . घी , तेल 1 वर्ष 1 वर्ष 1 वर्ष 8 . सैंधा नमक ( पिसा हुआ ) 48 मिनट 48 मिनट 48 मिनट 9 . ( प्रसूत ) बकरी , भेड़ का दूध 8 दिन बाद शुद्ध होता है । ( प्रसूत ) भैंस का दूध 15 दिन बाद शुद्ध होता है । ( प्रसूत ) गाय का दूध 10 दिन बाद शुद्ध होता है । अभ्यास प्रश्न 1 . दान की परिभाषा लिखिए । 2 . नवधा भक्ति के नाम बताइए । 3 . आहार दान का फल क्या है ? 4 . अन्तराय किस - किस कारणों से होता है ? 5 . आहार दान देने वालों की शुद्धि किस प्रकार होती है ? Aryan 6 दिन कलराव्य ( 47 ) पलायल्य