सत्यवादी जग में सुखी
" पर्वत ! यह क्या गजब कर रहे हो ? ' अजैर्यष्टव्यमिति ' का अर्थ कर रहे हो ' बकरों का यज्ञ में होम कराना ' । अरे दुष्ट , गुरु जी ने इस शब्द का अर्थ बतलाया था ' पुराने तीन वर्ष के धानों से होम करना ; क्योंकि उनमें उगने की शक्ति नहीं रहती । " _ नारद की बात सुनकर गुरुपुत्र पर्वत जो पिता की मृत्यु के पश्चात् स्वयं ही गुरु बन बैठा था , नारद से झगड़ने लगा और किसी भी तरह अपना पक्ष छोड़ने को तैयार नहीं हुआ । वाद - विवाद ने जब तूल पकड़ लिया तो दोनों में एक समझौता हुआ कि न्याय हेतु राजा वसु के पास जाए , वह जो निर्णय दें दोनों को मान्य होगा । बात यह थी कि नारद , पर्वत और वसु तीनों ही बचपन में गुरु क्षीर कदम्ब से पढ़ा करते थे , उन तीनों के सामने गुरु जी ने उस शब्द का अर्थ बतलाया था । पर्वत अपनी माँ के पास गया और वाद - विवाद की सब बात बताई । माँ ने भी पर्वत की बात को गलत बताया । वह दुविधा में पड़ गई - एक ओर हिंसा की पुष्टि , दूसरी ओर अपने पुत्र को कैसे बचाए जबकि उसका पक्ष गलत है । सोचा , विचारा , याद आया कि एक बार उसने वसु को अपने पति की मार से बचाया था , वसु ने उसे वर माँगने के लिए कहा था , और उसने उस वर को वसु के पास ही धरोहर के रूप में रखने को कह दिया था । बस इस समय उस वर को माँग लूँ । पहुँची राजा वसु के पास । यद्यपि जानती थी पुत्र का पक्ष गलत है , फिर भी राजा वसु से वर माँग ही लिया कि निर्णय मेरे पुत्र के पक्ष में ही देना । सत्यवक्ता के रूप में प्रसिद्ध राजा वसु विवश हो गया जब झगड़ा निर्णय के लिए राजा वसु के पास गया तो उसने कह ही डाला " जो पर्वत कहता है , वह सही है । गुरु जी ने ' अज ' शब्द का अर्थ ' बकरा ' ही किया था । " बस उसका इतना झूठ बोलना था कि उसका सिंहासन उस सहित पृथ्वी में फँसने लगा । सिंहासन में स्फटिक मणि के पाए लगे थे जिससे ऐसा दिखता था कि सिंहासन अधर में है और इसका कारण है राजा वसु की सत्यवादिता । जब राजा वसु का सिंहासन नीचे खिसकने लगा तो नारद ने फिर भी कहा - राजन् ! फिर सोच लो , झूठ बोलकर क्यों हिंसा का ताण्डव नृत्य कराने पर तुले हो , निर्णय बदल दो । परंतु ' विनाश काले विपरीत बुद्धि ' वसु ने पर्वत के पक्ष को ही सही ठहराया । बस सिंहासन खिसकते - खिसकते पूरा पृथ्वी में फँस गया और साथ में राजा वसु भी । झूठ के पाप से मरकर वसु सातवें नरक गया । पर्वत को गधे पर चढ़ाकर नगर से बाहर निकाल दिया गया । नारद को पूरा सम्मान मिला , राज्य मिला , जिसे त्यागकर उसने दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण की ओर तपस्या करके स्वर्ग गया ।
देखा आपने
' वसु झूठ सेती नरक पहुँचा , स्वर्ग में नारद गया ।
' धर्म तो वह अनुष्ठान है जिसे आठों - याम जीवन में चरितार्थ किया जाना चाहिए ।