पाठ - 13
अष्टाह्निका पर्व
प्रतिवर्ष कार्तिक - फाल्गुन - आषाढ़ की शुक्ला अष्टमी से पूर्णिमा तक यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है । हम जहाँ रहते हैं वह जम्बूद्वीप है । यह एक लाख योजन विस्तार वाला है । इसको घेरते हुए लवणसमुद्र , धातकीखण्डद्वीप , कालोदधि समुद्र , पुष्करवर द्वीप , पुष्करवर समुद्र बारुणीवर द्वीप , वारुणीवर समुद्र , क्षीरवर द्वीप , क्षीरवर समुद्र , घृतवर द्वीप , घृतवर समुद्र , इक्षुवरद्वीप , इक्षुवरसमुद्र है । जिनका विस्तार क्रमश : दूना दूना है । इसके पश्चात् आटा द्वीप नन्दीश्वर द्वीप है । इसके आगे भी स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त असंख्यात द्वीप समुद्र एक दूसरे को घेरते हुए हैं । नन्दीश्वर द्वीप नामक आठवें द्वीप का विस्तार 163 करोड़ 84 लाख योजन है । नन्दीश्वर द्वीप की चारों दिशाओं में एक एक अंजनगिरि है । ये पर्वत 84 हजार योजन विस्तार वाले हैं । इस द्वीप की पूर्व दिशा में राया . सुनन्दा , सुरम्या , सुसेना । नामक चार वापिकायें हैं । दक्षिण में सुभाला , विधुन्माला , सुषेणा , चन्द्रसेना नाम की एवं पश्चिम दिशा में श्रीदत्ता । श्रीसेना , श्रीकान्ता व श्रीराम नामक 4 वापिकायें तथा उत्तरदिशा में कार्माङ्गा कामबाणा , सुप्रभा , सर्वतोभद्रा नामक 4 वापिकायें हैं । ये 16 वापिका अंजनगिरि को धेरै हुये तथा एक लाख योजन विस्तार वाली हैं । प्रत्येक वापिका में दस हजार योजन विस्तार वाला दधिमुख पर्वत है । इस प्रकार 16 वापिका सम्बन्धी 16 दधिमुख पर्वत हैं । प्रत्येक वापिका के बाहर के दो कोने में दो - दो रतिकर पर्वत हैं । इस प्रकार कुल 32 रतिकर पर्वत हैं । इनका विस्ताराएक हजार योजना है । 16 + 4 + 32 , इस प्रकार कुल 52 पर्वत हैं । प्रत्येक पर्वत के शिखर पर एक एक अकृत्रिम जिनमन्दिर है और प्रत्येक जिनमन्दिर में 108 रत्नमयी जिनबिम्ब हैं । इस प्रकार कुल मिलाकर 52 जिनमन्दिरों में कुल 5616 जिनविम्ब हैं । प्रत्येक जिनबिम्ब पद्मासन में 500 धनुष की अवगाहना वाले हैं । इनकी प्रभा करोड़ों सूर्य के तेज और कान्ति को । लज्जित करती है । प्राकृतिक रूप से प्रतिमाओं के मुख एवं नख लाल तथा केशों की पंक्ति एवं नेत्र श्याम वर्ण के हैं । प्रतिमाओं के दर्शन का ऐसा अद्भुत प्रभाव है कि सम्यक्त्व की प्राप्ति सहज ही हो जाती है । ।अधिकांश रूप से चारों निकायों के इन्द्र एवं सम्यग्दृष्टि देव ही नन्दीश्वर द्वीप जाते हैं और वहाँ आठ दिन । रहकर भक्तिभाव पूर्वक अष्टाह्निका पर्व मनाकर सातिशय पुण्य का संचय करते हैं । कदाचित् मिथ्यादृष्टि देव भी । इनके साथ चला जाये तो वह भी सम्यक्त्व ग्रहण कर सकता है । इस पर्व का सम्बन्ध ज्ञानी सम्यग्दृष्टि देवों से है । क्योंकि मनुष्य की गमन शक्ति तो 45 लाख योजन प्रमाण ढाईद्वीप तक ही है । ढाई द्वीप तक विद्याधर या चारणऋद्धि । धारी मुनीश्वर ही जा सकते हैं , सामान्य मनुष्य नहीं । गृहस्थाश्रम में रहते हुए तीर्थंकर भी नहीं जा सकते हैं । मनुष्य अपनी शक्ति की लघुता को ध्यान में रखकर यहाँ पर ही जिनमन्दिर में नन्दीश्वर द्वीप और जिनबिम्ब की कल्पना कर पूजन किया करते हैं । इन दिनों लोग प्राय : नन्दीश्वरद्वीप मण्डल विधान करते हैं । कुछ समय से सिद्धचक्र मण्डल विधान भी इस समय करने का प्रचलन प्रारम्भ हो गया है । इस पर्व के दिनों में विशेष रूप से व्रत , नियम , संयम का पालन करना चाहिए तथा अपनी शक्ति के अनुसार एकासन , उपवास करते हुए आत्मा का चिन्तन करना चाहिए । यह पर्व दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में विशेष महत्त्व रखता है ।
अभ्यास प्रश्न
1 . अष्टाह्निका पर्व का सम्बन्ध किस द्वीप से है ?2 . नन्दीश्वरद्वीप का विस्तार कितना है ?
3 . नन्दीश्वरद्वीप में कितनी वापिकायें हैं ? नाम बताइए ।
4 . नन्दीश्वरद्वीप में कुल कितने जिनमन्दिर व जिनबिम्ब हैं ?
5 . नन्दीश्वरद्वीप में जिनबिम्बों के प्राकतिक सौंदर्य का वर्णन कीजिए ।
6 . नन्दीश्वरद्वीप कौन - कौन जा सकते हैं ?
7 . नन्दीश्वरद्वीप में हम क्यों नहीं जा सकते हैं ?
8 . अष्टाह्निका पर्व में कौन - सा विधान करना चाहिए ?