रत्नत्रय
सम्यग्दर्शन का लक्षण व भेद
सच्चे श्रद्धान ( विश्वास या यकीन ) को सम्यग्दर्शन कहते हैं । निश्चय सम्यग्दर्शन और व्यवहार सम्यग्दर्शन ये दो सम्यग्दर्शन के भेद हैं । आत्मा का जैसा का तैसा परद्रव्यों से भिन्न श्रद्धान ( विश्वास ) निश्चय सम्यग्दर्शन कहलाता है । सच्चे देव शास्त्र - गुरु , दयामयधर्म और सातों तत्त्वों का सच्चे दिल से यथार्थ श्रद्धान करना व्यवहार सम्यग्दर्शन कहलाता है ।
सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति और आवश्यकता
सम्यग्दर्शन धर्मरूपी पेड़ की जड़ है । जड़ के बिना पेड़ नहीं ठहरता , वैसे ही सम्यग्दर्शन के बिना सब धर्म कर्म व्यर्थ होते हैं , उनसे कुछ अधिक लाभ नहीं होता । इसलिए आत्म - कल्याण के लिए सबसे पहले सम्यग्दर्शन प्राप्त करना आवश्यक है ।
सम्यग्दर्शन की महिमा
जिस प्राणी को सम्यग्दर्शन हो जाता है , वह मरने पर स्वर्ग का देव या भोगभूमि में मनुष्य गति में उत्पन्न होता । है , स्त्री नहीं होता , पहले नरक को छोड़ अन्य छह नरकों में नहीं जाता , भवनत्रिक , स्थावर , विकलत्रय , पशु , नपुंसक , अल्पायु , गरीब , हीनाङ्ग , पक्षी और नीचकुली भी नहीं होता ।
सम्यग्ज्ञान का लक्षण व भेद
ठीक - ठीक जैसा का तैसा जानना , किसी प्रकार का संशय नहीं होना सम्यग्ज्ञान कहलाता है । निश्चय सम्यग्ज्ञान और व्यवहार सम्यग्ज्ञान ये दो सम्यग्ज्ञान के भेद हैं । आत्मा को जैसा का तैसा पर द्रव्यों से भिन्न जानना , निश्चय सम्यग्ज्ञान कहलाता है । पदार्थों के स्वरूप को ठीक - ठीक जैसा का तैसा जानना , उसमें किसी प्रकार का संशय नहीं होना , व्यवहार सम्यग्ज्ञान कहलाता है ।
सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति और आवश्यकता
सम्यग्ज्ञान होने के पहले जो ज्ञान मिथ्या होता है , सम्यग्दर्शन होने पर वही ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाने लगता है । सम्यग्ज्ञान से ही आत्मज्ञान और केवलज्ञान प्राप्त होता है ।
सम्यग्ज्ञान की महिमा
सम्यग्ज्ञान होने पर त्रिगुप्ति ( मन , वचन , काय की एकाग्रता ) से जन्म - जन्म के पाप कट जाते हैं , जो पाप राणियों के करोड़ों जन्मों तक तप करने पर भी नहीं कटते ।
सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति का उपाय
सच्चे शास्त्रों को पढ़ने , पढ़ाने , सुनने , सुनाने तथा बार - बार विचारने , आत्मचिन्तन करने , पाठशाला । खुलवाने , शास्त्रदान करने या छात्रवृत्ति देने आदि से सम्यग्ज्ञान प्राप्त होता है ।
सम्यक्चारित्र का लक्षण व भेद
अशुभ कार्यों को छोड़ना , शुभ कार्यों में प्रवृत्ति करना सम्यक्चारित्र कहलाता है । निश्चय सम्यक् चारित्र और व्यवहार सम्यक् चारित्र ये दो सम्यक् चारित्र के भेद हैं । आत्मस्वरूप में लीन होना , निश्चय सम्यक् चारित्र कहलाता है । हिंसा , झूठ , चोरी , कुशील और परिग्रह इन पाँच पापों तथा क्रोध , मान , माया . लोभ इन चार कषायों का त्याग करना , व्यवहार सम्यक्चारित्र कहलाता है ।
सम्यक्चारित्र की प्राप्ति का उपाय
वीतरागी निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधुओं की संगति करने , दान देने , वैय्यावृत्ति आदि करने तथा व्रत , समिति , गुप्ति , तप , धर्म आदि करने से सम्यक्चारित्र प्राप्त होता है । इस सम्यक्चारित्र से ही संवर व निर्जरा होती है ।
रत्नत्रय और मोक्षमार्ग
सम्यग्दर्शन , सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को रलत्रय कहते हैं , इन तीनों की ही एकता को मोक्षमार्ग कहते हैं । यथार्थ में यही मोक्ष प्राप्ति का उपाय है ।
शिक्षा
संसार के दुःखों से छूटने का सच्चा उपाय रत्नत्रय ही है , अतः हमको रत्नत्रय धारण करना चाहिए हमारे मनुष्य जन्म की सफलता भी इसी में है । रत्नत्रय को धारण करने वाले व्रती , श्रावक या मुनि होते हैं ।
अभ्यास प्रश्न
1 . रत्नत्रय किसे कहते हैं ? भेद बताइए ।
2 . रत्नत्रय प्राप्ति का उपाय बताइए ।
3 . इस पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
4 . रत्नत्रय और मोक्षमार्ग में क्या अन्तर है ?
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