सेठ सुदर्शन
aangdesh में champanagari की राजधानी में वृषभदत्त नामक एक सठ रहता था । जिसकी अहंददासी namak patni ti. usi के यहाँ एक ग्वाला सेवक था । एक दिन वह वन स अपन घर आ रहा था । मार्ग में शिला हये एक मनिराज को ध्यान लगाये देखा और मुनिराज के निकट पहुंचा । उसने ओस से भीगी मनिराज की समान गोविनयपर्वक पोंछा और रात्रि भर मुनिराज की सेवा की । प्रात : काल जव मुनिराज का ध्यान टूटा तो उन्होंने ग्वाले को पंचनमस्कार मंत्र दिया । ग्वाला उस मत्र का रट लगान लगा और उठते - बैठते . सोते - जागते उसी मंत्र का । वारण करता रहता था । एक दिन वाले की गायें नदी पार करने लगी । तब वह भी नमस्कार मंत्र का स्मरण करते का उनके पीछे नदी में कूद गया । दुभाग्य से नदी में कूदते ही एक नुकीली लकडी उसके पेट में घस गयी । जिससे । ग्वाले का प्राणान्त हो गया परन्तु णमोकार मंत्र के प्रभाव से वह ग्वाला , सेठ वषभदत्त के यहाँ पत्र रूप में उत्पन्न हुआ , जिसका नाम सुदर्शन रखा गया ।कालक्रम से सुदर्शन युवक हो गया । उसी नगरी में सागरदत्त सेठ भी रहता था । उसकी पत्नी का नाम सागरसेना था । मनोरमा उनकी कन्या थी । उसी के साथ सुदर्शन का विवाह हुआ ।
एक दिन सेठ वृषभदत्त समाधिगुप्त महामुनि के दर्शन के लिये गया । वहाँ मुनिराज के धर्मोपदेश से वैराग्य जागत हो गया और सेठ ने जिनदीक्षा धारण कर ली । उससे सुदर्शन के ऊपर गह - परिवार , व्यवसाय आदि का दायित्व आ पड़ा । सेठ सुदर्शन हमेशा सदाचार , श्रावक - व्रत पालन तथा दान पुण्यकर्म में अपना जीवन व्यतीत करता था ।
मगध अधिपति महाराज गजवाहन स्वयं भी उसे खुब मानते थे । एक दिन वे सुदर्शन के साथ उपवन में । भ्रमण कर रहे थे । उनकी पत्नी भी साथ में थी । वह सुदर्शन के रूप - सौन्दर्य को देखकर मोहित हो गयी ।
सेठ सुदर्शन संसार में रहते हुए भी संसार से स्वतंत्र होना चाहते थे । इसलिए वे कभी - कभी ध्यान में लीन रहते थे । वे अष्टमी और चतुर्दशी की तिथियों में रात्रि के समय प्रायः श्मशान में जाया करते थे और आत्मध्यान में लीन रहते थे । एक दिन रानी की आज्ञा से दासी ने कायोत्सर्ग ध्यान मुद्रा में लीन सुदर्शन को उठाकर महल में पहुँचा दिया ।
रानी की अनेक कचेष्टाओं से भी सेठ सदर्शन का चित्त विचलित नहीं हुआ । तब रानी लज्जित होकर सुदर्शन को फँसाने का प्रयल करने लगी और अपने शरीर को नोंचकर चिल्लाने लगी । तब राजा ने सेठ सुदर्शन को शूली पर चढ़ा देने का दण्ड घोषित किया । दण्ड के समय पुण्य प्रताप एवं देवों के अतिशय से शूली पुष्पमाला बन गई । तब राजा ने सत्य वार्ता को जानकर सुदर्शन से क्षमा मांगी एवं रानी और दासी को दण्ड दिया ।
परन्तु इस घटना से सुदर्शन के अन्त : स्थल में अत्यधिक वैराग्य भाव जागृत हो गया । उसने उसी समय अपने पुत्र सुकान्तवाहन को परिवार का दायित्व सौंपकर विमलवाहन मुनिराज से जिनदीक्षा धारण कर ली । कुछ समय बाद केवलज्ञान को प्राप्त किया और अन्त में सबको आत्महित का ( कल्याण का ) मार्ग दिखलाते हुए मोक्षधाम को प्राप्त किया ।
महामुनि सुदर्शन स्वामी को गुलजारबाग , पटना से निर्वाण प्राप्त हआ । प्रत्येक वर्ष यहाँ पौष शुक्ल पंचमी को निर्वाण महोत्सव मनाया जाता है ।
अभ्यास प्रश्न
1 . किस मंत्र के प्रभाव से ग्वाला सेठ सुदर्शन बना ?
2 . सेठ सुदर्शन के माता - पिता का नाम बताइए ।
3 . सेठ सुदर्शन के पली - पुत्र व सास - ससुर का नाम बताइए ।
4 . सेठ सुदर्शन ने एवं उनके पिता ने किन मुनिराज से जिनदीक्षा ली थी ?
5 . सेठ सुदर्शन की कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है ?