तीर्थंकर शान्तिनाथ
एक समय हस्तिनापुर नगरी में काश्यपगोत्री महाराज विश्वसेन राज्य करते थे । गान्धार नरेश के राजा । अजितंजय की पुत्री ऐरा देवी इनकी महारानी थी । एक बार भाद्रपद कृष्णा सप्तमी के दिन भरणी नक्षत्र में रात्रि के चतुर्थ । भाग में उन्होंने साक्षात् पुत्ररूप फल देने वाले स्वप्न देखे । प्रातः राजा विश्वसेन ने उन्हें उन स्वानों का फल मनाया । नव । महीने बाद ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन याम्ययोग में प्रातःकाल के समय बालक शान्तिकमार का जन्म हुआ । चार । निकायों के देवों ने मिलकर तीर्थकर बालक का जन्मोत्सव मनाया । तीर्थंकर शान्तिनाथ की आय एक लाख वर्ष का था । इनका शरीर चालीस धनुष ऊंचा एवं स्वर्ण के समान वर्ण का था । ये जन्म से ही तीन ज्ञान के धारी थे ।जब इनके कुमार काल के पच्चीस हजार वर्ष बीत गये , तब महाराज विश्वसेन ने इन्हें अपना सम्पूर्ण राज्य । सौंप दिया । पच्चीस हजार वर्ष अखण्ड राज्य भोगने के बाद चक्रवर्ती के लक्षण स्वरूप चक्र आदि चौदह रल एवं नव निधियों के स्वामी हुये । इस प्रकार आप तीर्थंकर , चक्रवर्ती तथा कामदेव तीनों पद के धारी थे ।
एक दिन दर्पण में मुख देखने से उन्हें उसी समय वैराग्य हो गया । उसी समय लौकान्तिक देवों ने आकर उनके वैराग्य की अनुमोदना की । तब समस्त राजपाट त्याग कर सर्वार्थसिद्धि नामक पालकी में आरूढ़ होकर सहस्राम वन में जाकर , वस्त्राभूषणों का त्यागकर , पंचमुष्ठि केशलोंच करके , दिगम्बर जिनदीक्षा धारण करते ही सामायिक चारित्र सम्बन्धी विशुद्धता तथा मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त किया । इनके साथ एक हजार राजाओं ने मुनि दीक्षा धारण की थी ।
दीक्षा के बाद मन्दिरपुर नगर में सुमित्र नामक राजा ने अपने परिवार के साथ बड़े हर्ष तथा नवधाभक्ति पूर्वक प्रथम आहार दान दिया और पंचाश्चर्य प्राप्त किये । अपनी कठोर तपस्या से पौष शुक्ला दशमी के दिन संध्या काल के समय में क्षपक श्रेणी चढकर शुक्लध्यान के द्वारा चार घातिया कर्मों को नष्ट करके केवलज्ञान को प्राप्त किया । देवों ने आकर कैवल्य प्राप्ति का उत्सव किया और सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने समवशरण की रचना की । जिसमें 36 गणधर , 62000 मुनिराज , 60350 हरिषेणा आदि आर्यिकायें , सुरकीर्ति आदि । लाख श्रावक और अहंहासी आदि । 3लाख श्राविकायें थीं ।
भगवान ने दिव्यध्वनि के माध्यम से सप्ततत्व , नवपदार्थ , पद्रव्य आदि का यथार्थ वर्णन कर जिनधर्म के सिद्धान्तों का प्रचार - प्रसार किया ।
इसी प्रकार देश देशान्तरों में विहार करते हुए जब एक माह की आयु शेष रह गयी तब सम्मेदशिखर जी में । विहार बन्द कर अचलयोग से विराजमान हो गये तथा ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी के दिन सम्पूर्ण कर्मों को नष्ट करके निर्वाण पद को प्राप्त कर लिया ।
अभ्यास - प्रश्न
1 . तीर्थकर बालक शान्तिनाथ का जन्म कहाँ हुआ था ?
2 . तीर्थंकर बालक शान्तिनाथ के माता पिता का नाम बताइए ।
3 . तीर्थंकर शान्तिनाथ किन किन पदों के धारी थे ?
4 . तीर्थंकर शान्तिनाथ को किस कारण से वैराग्य हआ था ?
5 . तीर्थकर मनि शान्तिनाथ का प्रथम आहार कहाँ हुआ था ?