सिद्ध-क्षेत्रों की अर्घ्यावली (1) श्री अष्टापद (कैलाश) सिद्ध क्षेत्र (हिमालय पर्वत) जल आदिक आठों द्रव्य लेय, भरि स्वर्णथार अर्घहि करेय | जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजूँ जोरि पान || ऊँ ह्रीं श्रीकैलाश पर्वत सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (2) सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र (झारखण्ड) जल गंधाक्षत पुष्प सु नेवज लीजिये | दीप धूप फल लेकर अर्घ सु दीजिये || पूजौं शिखर सम्मेद सु-मन-वच-काय जी | नरकादिक दुख टरें अचल पद पायजी || ऊँ ह्रीं श्रीसम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (3) गिरनार सिद्ध क्षेत्र (गुजरात) अष्ट द्रव्य को अर्घ्य संजोयो, घण्टा नाद बजाई | गीत नृत्य कर जजौं 'जवाहर' आनन्द हर्ष बधाई || जम्बु द्वीप भरत आरज में, सोरठ देश सुहाई | शेषावन के निकट अचल तहं, नेमिनाथ शिव पाई || ऊँ ह्रीं श्रीगिरनार सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (4) श्री चम्पापुर सिद्ध क्षेत्र (बिहार) जल फल वसु द्रव्य मिलाय, लै भर हिम थारी | वसु अंग धरा पर ल्याय, प्रमुदित चित्तधारी || श्री वासु पूज्य जिनराय, निर्वृतिथान प्रिया | चंपापुर थल सुख दाय, पूजौं हर्ष हिया || ऊँ ह्रीं श्रीचम्पापुर सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (5) श्री पावापुरी सिद्ध क्षेत्र (बिहार) जल गंध आदि मिलाय वसुविध थार स्वर्ण भरायके | मन प्रमुद भाव उपाय करले आय अर्घ्य बनायके || वर पद्मवन भर पद्मसरवर बहिर पावा ग्राम ही | शिव धाम सन्मति स्वामी पायो, जजौं सो सुखदा मही || ऊँ ह्रीं श्रीपावापुरी सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (6) श्री सोनागिरि सिद्ध क्षेत्र (मध्यप्रदेश) वसु द्रव्य ले भर थाल कंचन अर्घ दे सब अरि हनूं | 'छोटे' चरण जिन राज लय हो शुद्ध निज आत्म बनूं | नंगाऽनंगादि मुनीन्द्र जहं ते मुक्ति लक्ष्मी पति भये | सो परम गिरवर जजूं बस विधि होत मंगल नित नये || ऊँ ह्रीं श्रीसोनागिरि सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (7) श्री नयनागिरि (रेशन्दीगिरि) सिद्ध क्षेत्र (मध्यप्रदेश) शुचि अमृत आदि समग्र, सजि वसु द्रव्य प्रिया | धारौं त्रिजगत पति अग्र, धर वर भक्त हिया || ऊँ ह्रीं श्रीनयनागिरि सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (8) श्री द्रोणगिरि सिद्ध क्षेत्र (मध्यप्रदेश) जल सु चन्दन अक्षत लीजिये, पुष्प धर नैवेद्य गनीजिये | दीप धूप सुफल बहु साजहीं, जिन चढा़य सुपातक भाजहीं || ऊँ ह्रीं श्रीद्रोणगिरि सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (9) सिद्धवर कूट सिद्ध क्षेत्र (मध्यप्रदेश) जल चन्दन अक्षत लेय, सुमन महा प्यारी | चरु दीप धूप फल सोय, अरघ करौं भारी || द्वय चक्री दस काम कुमार, भवतर मोक्ष गये | तातें पूजौं पद सार, मन में हरष ठये || ऊँ ह्रीं श्रीसिद्धवरकूट सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (10) श्री शत्रुञ्जय सिद्ध क्षेत्र (गुजरात) वसु द्रव्य मिलाई, थार भराई, सन्मुख आई नजर करो | तुम शिव सुखदाई धर्म बढ़ाई, हर दुखदाई, अर्घ करो || पांडव शुभ तीनं सिद्ध लहीनं, आठ कोड़ि मुनि मुक्ति गये | श्री शत्रुञ्जय पूजौं सन्मुख हूजो, शान्तिनाथ शुभ मूल नये || ऊँ ह्रीं श्रीशत्रुंजय सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (11) श्री तुंगीगिरि सिद्ध क्षेत्र (महाराष्ट्र) जल फलादि वसु दरव सजाके, हेम पात्र भर लाऊँ | मन वच काय नमूं तुम चरना, बार बार शिर नाऊँ || राम हनू सुग्रीव आदि जे, तुंगीगिर थिरथाई | कोड़ी निन्यानवे मुक्ति गये मुनि, पूजूं मन वच काई || ऊँ ह्रीं श्रीतुंगीगिरि सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (12) श्रीकुन्थलगिरि सिद्ध क्षेत्र (महाराष्ट्र) जल फलादि वसु दरव लेय थुति ठान के | अर्घ जजौं तुम पाप हरो हिय आनके || पूजौं सिद्ध सु क्षेत्र हिये हरषाय के | कर मन वच तन शुद्ध, करमवश टारके || ऊँ ह्रीं श्रीकुन्थलगिरि सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (13) चूलगिरि (बावन गजा) सिद्ध क्षेत्र (मध्यप्रदेश) सजि सौंज आठों होय ठाड़ा, हरष बाढ़ा कथन विन | हे नाथ भक्तिवश मिले जो, पुर न छुटे एक दिन || दशग्रीव अंगज अनुज आदि, ऋषीश जहंते शिव लहो | सो शैल बड़वानी निकट गिरिचूल की पूजा ठहो || ऊँ ह्रीं श्रीचूलगिरि सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (14) श्रीगजपंथ सिद्ध क्षेत्र (महाराष्ट्र) जल फल आदि वसु दरव अति अत्तम, मणिमय थाल भराई | नाच नाच गुण गाय गायके, श्री जिन चरण चढ़ाई || बलभद्र सात वसु कोड़ि मुनीश्वर, यहां पर करम खपाई | केवल लहि शिव धाम पधारे, जजूँ तन्हें शिर नाई || ऊँ ह्रीं श्रीगजपंथ सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (15) श्रीमुक्तागिरि सिद्ध क्षेत्र (मध्यप्रदेश) जल गंध आदिक द्रव्य लेके, अर्घ कर ले आवने | लाय चरन चढ़ाय भविजन, मोक्षफल को पावने || तीर्थ मुक्तागिरि मनोहर, परम पावन शुभ कहो | कोटि साढ़े तीन मुनिवर, जहाँ ते शिवपुर लहो || ऊँ ह्रीं श्रीमुक्तागिरि सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (16) पावागढ़ सिद्ध क्षेत्र (गुजरात) वसु द्रव्य मिलाई भविजन भाई, धर्म सुहाई अर्घ करुँ | पूजा को गाऊँ हर्ष बढ़ाऊं, खूब नचाऊँ प्रेम भरुं || पावा गिरि वन्दौं मन आनन्दौं, भव दुख खंदौं चितधारी | मुनि पाँच जुकोड़ं भवदुख छोड़ं, शिवमुख जोड़ं सुखभारी || ऊँ ह्रीं श्रीपावागढ़ सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (17) रेवातट (नेमावर, म.प्र.) स्थित सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र रेवानदी के तीर पर सिद्धोदय है क्षेत्र, इसके दर्शन मात्र से खुलता सम्यक् नेत्र | रावण-सुत अरु सिद्ध मुनि साढ़े पांच करोड़, ऐसे अनुपम क्षेत्र को पूजूं सदा कर जोड़ || ऊँ ह्रीं श्रीरेवातट स्थित सिद्धोदय सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य- नि0 स्वाहा | (18) ऊन (पावागिरि, म.प्र.) सिद्ध क्षेत्र जल फल वसु द्रव्य पुनित, लेकर अर्घ करुं | नाचूं गाऊं इह भांति, भवतर मोक्ष वरुं || श्री पावा गिरि से मुक्ति, मुनिवर चारि लही | तिन इक क्रम से गिन, चैत्य पूजत सौख्य लही || ऊँ ह्रीं श्रीपावागिरि(ऊन) सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (19) कोटिशिला सिद्ध क्षेत्र (उड़ीसा) जल फल वसु दरव पुनीत, लेकर अर्घ करुं | नाचूं गाऊं इह भांति, भवतर मोक्ष वरुं || श्री कोटिशिला के मांहि, जशरथ तनय कहै | मुनि पंच शतक शिवलीन, देश कलिंग दहै || ऊँ ह्रीं श्रीकोटिशिला सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (20) तारंगागिरि सिद्ध क्षेत्र (गुजरात) शुचि आठों द्रव्य मिलाय तिनको अर्घ करौं, मन वच तन देहु चढ़ाय भवतर मोक्ष वरौं | श्री तारंगागिरि से जान, वरदत्तादि मुनी, त्रय अर्ध कोटि परमान ध्याऊँ मोक्षधनी || ऊँ ह्रीं श्रीतारंगागिरि सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्य नि0 स्वाहा | (21) श्री गौतम गणधर निर्वाण-स्थली (गुणावा, बिहार) जल फल आदिक द्रव्य इकट्ठे लीजिये, कंचन थारी मांहि अरघ शुभ कीजिये | ग्राम गुणावा जाय सु मन हर्षाय के, गौतम स्वामी चरण जजौं मन लायके || ऊँ ह्रीं श्रीगौतम गणधर निर्वाण स्थली गुणावा सिद्धक्षेत्राय अर्घ्य- नि0 स्वाहा | (22) जम्बु स्वामी निर्वाण-स्थली (चौरासी, मथुरा सिद्ध क्षेत्र, उ.प्र.) जल फल आदिक द्रव्य आठहू लीजिये, कर इकठी भरि थाल अर्घ शुभ कीजिये | मथुरा जम्बू स्वामी मुक्ति थल जायके, पूजित भवि धरि ध्यान सुयोग लगायके || ऊँ ह्रीं श्री जम्बुस्वामी निर्वाणस्थली चौरासी मथुरा सिद्धक्षेत्राय अर्घ्य- नि0 स्वाहा | |