Home noncss श्री पार्श्वनाथ जिन पूजन (बड़ागाँव) |SHRI PARSHVANATH JIN POOJAN (BADAGAON) श्री पार्श्वनाथ जिन पूजन (बड़ागाँव) |SHRI PARSHVANATH JIN POOJAN (BADAGAON) Author - jainism January 18, 2024 SHRI PARSHVANATH JIN POOJAN (BADAGAON) / श्री पार्श्वनाथ जिन पूजन (बड़ागाँव)आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मतिसागर जी(पूजन विधि निर्देश)(गीतिका छन्द)किया नहिं बैर कमठासुर, क्षमा वसुधा सुहाई है |जगी करुणा अमल हृदय, नाग-नागिन दुहाई है ||धरी दीक्षा वरी मुक्ती, नाम पारस सुहाया है |विश्व अतिशय चमत्कारी, तीर्थ बड़ागाँव आया है ||(दोहा)माँ वामा के लाड़ले, अश्वसेन सिरताज |मन मंदिर राजो विभो, पार्श्वनाथ हितराज ||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (आह्वाननम्)ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (स्थापनम्)ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव! भव! वषट! (सन्निधिकरणम्)(शम्भू छन्द)हे जन्म-मृत्यु से रहित रूप! जग-राग-द्वेष भी लेश नहीं |क्रोधादिक मल से अमल विभो! पर-मल का है परिवेश नहीं ||वैभाविक मल से अमल बनूँ, प्रासुक जल चरण चढ़ाता हूँ |हे बड़ागाँव पारस बाबा! सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ ||१||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नम: जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति. स्वाहा ।शीतल हो आप निराकुल हो, पर-परिणति का परिवेश नहीं |सुख-शान्ति-सुधा निज में पीते, आकुलता मन में लेश नहीं ||आकुलित हुआ मैं विषयों में, शुभ चन्दन चरण चढ़ाता हूँ |हे बड़ागाँव पारस बाबा! सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ ||२||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नम: संसारताप विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।अक्षत हो आप अमल प्रभुवर! शाश्वत सुख को उपजाया है |अविकार आत्मरस में रम कर, निज अनुभव को प्रगटाया है ||निज अक्षत पद के हेतु नाथ! अक्षत मैं चरण चढ़ाता हूँ |हे बड़ागाँव पारस बाबा! सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ ||३||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नम: अक्षय पद प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।स्याद्वादमयी सत्-पुष्पों से, निज गुण फुलवारी महकायी |आत्मानुभूति की गन्ध विभो! पर-गन्ध नहीं तुमको भायी ||विषयों की गंध मिटाने को, निजगुणमय पुष्प चढ़ाता हूँ |हे बड़ागाँव पारस बाबा! सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ ||४||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नम: कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामिति स्वाहा।तुम क्षुधा रोग से परे विभो! खाने-पीने की चाह नहीं |निज अनुभव नित आस्वादन कर, पर-परिणति की परवाह नहीं ||मम क्षुधा विजय हो हे स्वामिन्! चारु चरु चरण चढ़ाता हूँ |हे बड़ागाँव पारस बाबा! सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ ||५||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नम: क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामिति स्वाहा।हैं सकल द्रव्य के गुण अनन्त, पर्याय अनन्ते राजत हैं |दर्पणवत् केवलज्ञान विभो! जैसे के तैसे साजत हैं ||निज केवलज्ञान जगाने को, रत्नोंमय दीप चढ़ाता हूँ |हे बड़ागाँव पारस बाबा! सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ ||६||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नम: मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् निर्वपामिति स्वाहा।वसुकर्म दहन करके प्रभुवर! वसु-गुण निज में प्रगटाये हैं |दोषों का धुआँ उड़ा करके, सद्गुण निज में हुलसाये हैं ||निज-कर्म दहन के हेतु विभो! अनुभव-घट धूप चढ़ाता हूँ |हे बड़ागाँव पारस बाबा! सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ ||७||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नम: अष्टकर्म दहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।फल रत्नत्रय का मुक्ति विभो! पुरुषार्थ प्रबल से प्राप्त किया |फल श्रेष्ठ सभी पाये निज में, नित शांति-सुधा रस स्वाद लिया ||अनुभव शिवफल मैं प्राप्त करूँ, प्रासुक फल चरण चढ़ाता हूँ |हे बड़ागाँव पारस बाबा! सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ ||८||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नम: मोक्षफल प्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।उपसर्ग सहा कमठासुर का, उपसर्ग विजेता कहलाये |सुर पद्मावति-धरणेन्द्र तभी, पूरब उपकार सुमिर आये ||यह अर्घ्य सँजोकर के प्रभुवर, निज में सुख साता पाता हूँ |हे बड़ागाँव पारस बाबा! सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ ||९||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नम: अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।जयमाला(दोहा)बाल ब्रह्मचारी विभो, बड़ागाँव भगवान |गुणमाला वर्णन करुँ, मिले आत्म गुणखान ||(पद्धरि छन्द)जय पारसनाथ अनाथ नाथ, सुरगण नित चरणन नमत माथ |अद्भुत तुमरी महिमा अपार, शब्दों में जाती नहिं उचार ||१||दश अतिशय-युत तुम जन्म लीन, इन्द्रादि मेरु अभिषेक कीन |जब युवा भये अतिशय विशाल, शादी की चर्चा थी खुशाल ||२||शादी से ली तुम दृष्टि मोड़, लीना मुक्ती से नेह जोड़ |जलते लखि नागिन-नाग दोय, णमोकार सुन गये देव होय ||३||होकर विराग दीक्षा-विभोर, तप तपें दृष्टि इन्द्रिय न ओर |सहसा कमठासुर कियो आन, उपसर्ग कष्ट दीनो महान ||४||सुर पद्मावति-धरणेन्द्र दोय, पूरब भव मन्त्र प्रभाव जोय |आये उपकारी जान नाथ, कमठासुर चरणन धरो माथ ||५||घाती कर्मनि की प्रकृति नाश, अष्टादश दोष नशाय खास |केवलज्ञानी होकर अशेष, तुम प्रकट लखे जग अर्थ शेष ||६||प्रभु समवशरण महिमा अपार, उपदेश सुनै सब भेद टार |प्रभु स्याद्वाद वाणी महान, एकान्त नशा सब का जहान ||७||तुम भेदभाव सबका मिटाय, रत्नत्रय से शिवपथ दिखाय |चौंतीसों अतिशय और चार, अनन्त सोहें वसु प्रातिहार्य ||८||हैं गुण अनन्त महिमा जहान, जग में अनुपम हैं आप शान |जो शरण आपकी गहे आय, फिर आधि-व्याधि नहिं रहे ताय ||९||पंगू बहरा या मूक कोय, तुम भक्त विषें नहिं रोग होय |निर्धन निपुण्य प्रभु शरण आय, मनवांछित फल को लेत पाय ||१०||सम्यक् भक्ती जो करे आप, नाशे विभाव भव मिटे ताप |यश चहुँदिशि में वायु समान, छाया मेटो संकट महान ||११||तुम वीतराग मैं राग-लीन, प्रभु गुण-निधान, मैं राग-धीन |केवलज्ञानी हो शुद्ध बुद्ध, मैं ज्ञान-रहित विषयन प्रबुद्ध ||१२||टंकोत्कीर्ण विभु शुद्ध भाव, मुझमें पर-परिणति का लगाव |प्रभु ज्ञानानंद विलीन आप, नित निज अनुभव की जपत जाप ||१३||वैभव नहिं भव-सुख चाह मोय, शिव-सुन्दरि से मम नेह होय |अरजी ‘सन्मति’ करुणा महान, तुम से गुण हों मुझमें प्रधान ||१४||(दोहा)जन मन की चिन्ता हरो, हे पारस ऋषिराज |बड़ागाँव अतिशय बड़ा, सिद्ध होंय सब काज ||ॐ ह्रीं अर्हं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नम: अनर्घ्यपद प्राप्तये पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।स्वयं आत्म पुरुषार्थ से, हुए स्वयं जगदीश |विश्व शान्ति सुख-सम्पदा, ‘सन्मति’ चरणों शीश ||।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।। Tags donenoncss Facebook Twitter Whatsapp Newer Older