दुःख की जड़ ' मेरा '
' यह कौन चिल्ला रहा है , निकालो इसे यहाँ से फौरन , मेरी नींद Disturb हो रही है । ' सेठ जी के कहने पर धर्मशाला के प्रबन्धकर्ता ने उस लड़के को बाहर निकलवा दिया । जोरों की ठंड , बच्चे को तेज बुखार , पेट में भयानक दर्द , खुले में पड़े बच्चे ने दम तोड़ दिया । सेठ जी ने मृत बच्चे को देखा , चैन की साँस ली , सारी रात खर्राटे लेकर सोते रहे , मानों कुछ हुआ ही न हो । सेठ जी घर आए । 16 वर्ष बाद लौटे थे । जब गए थे सेठानी गर्भवती थी । उनके जाने के बाद ही सेठानी ने बच्चे को जन्म दिया था । सेठानी से सब समाचार सुना , पूछा - ' लड़का कहाँ है ? ' ' वह तो आपको ही ढूँढने परदेश गया है । ' ' कहाँ गया ? ' ' कुछ पता नहीं । ' सेठ जी चल दिए पुत्र को खोजने । उसी धर्मशाला में पहुँचे , पूछताछ की । पता चला कि लड़का अमुक दिन यहाँ ठहरा तो था । रात्रि में उसके पेट में दर्द हुआ , वह खूब चिल्ला रहा था , आपके कहने से ही हमने उसे धर्मशाला से बाहर निकाल दिया था और उसने बाहर पड़े - पड़े दम तोड़ दिया था । सेठ जी को सेठानी ने जो पुत्र का हुलिया बताया था , उसके घर से जाने की तारीख बताई थी , नाम आदि बताया था , धर्मशाला के रजिस्टर से मिलान किया और बस सेठ जी का दिमाग घूम गया , चक्कर आ गया , बेहोश हो गए । उपचार किया गया , होश में आए , एक दम चिल्लाए - ' हाय . . . ! मेरा बच्चा । ' फूट - फूट कर रोने लगे । _ _ _ एक प्रश्न चिन्ह लगता है इस घटना पर । जब बच्चा मृत अवस्था में सामने पड़ा था , तब तो सेठ जी की आँख में एक भी आँसू नहीं था । और अब जब बच्चा सामने नहीं है , दहाड़ मार - मार कर रो रहे हैं सेठ जी । बात कुछ नहीं भैया । बस इतनी सी ही है कि जो मरा था वह ' मेरा ' था । तो सारा दुःख इस ' मेरा है ' ही में तो है । वास्तव में पुत्र तो पुत्र है , उसमें मेरापन जोड़ा तो दु : खी हो गए । अब तो संभलो । स्वभाव से जो अपना है ही नहीं , बस उसको अपना मानना छोड़ दो , सुखी हो जाओगे । । मनुज तन को प्रकृति का ये वरदान । सिर्फ शाकाहार से संभव आत्म कल्याण ।