चौका शुद्धि
चौका का अर्थ होता है चार , शुद्धि का अर्थ शुद्धता अर्थात् द्रव्य , क्षेत्र , काल , भाव की शुद्धि होना चौका की शुद्धि है । चौका से तात्पर्य है भोजन बनाने का एवं भोजन करने का स्वच्छ स्थान । उपर्युक्त चार प्रकार की शुद्धियों के चार - चार भेद हैं , इस प्रकार सब मिलाकर सोलह भेद हो जाते हैं , जिसे श्रावक गण सोला कहते हैं । सोलह प्रकार की शुद्धि इस प्रकार है :
( 1 ) द्रव्य शुद्धि - आहार में उपयोग आने वाली समस्त वस्तुओं की शुद्धि द्रव्य शुद्धि है ।
1 . अन्न शुद्धि - खाद्य सामग्री सड़ी , गली , घुनी न हो । उसे यथोचित धोकर धूप में सुखा लें । बिना धुले अन्न , मसाले आदि का प्रयोग योग्य नहीं हैं । गेहूँ । आदि को सूख जाने के पश्चात् हाथ की चक्की या घर में लगी इलेक्ट्रिक चक्की से पीसना चाहिए एवं मर्यादित वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए प्लास्टिक , चीनी मिट्टी के बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए
2 . जल शुद्धि - जल शुद्धि में दो बातें आती हैं - पहली जल को छानना और दूसरी जल में से निकले जीवों की रक्षार्थ जीवाणी को यथास्थान पहुँचाना । जल छानने के लिए ऐसे मोटे कपड़े का प्रयोग करना चाहिए , जिससे सूर्य की रोशनी न दिखे । जल छानने का कपड़ा दोहरा रहना चाहिए जल छानने के पश्चात् छन्ने को तुरंत ही सुखाना चाहिए क्योंकि अधिक देर गीला रहने से उसमें जीवाणु ( बैक्टिरिया ) की उत्पत्ति हो जाती है । जीवाणी करने में इतनी सावधानी अवश्य रखना चाहिए कि जीवाणी को कुंदे वाली बाल्टी द्वारा धीरे - धीरे कुँए में डालना चाहिए । छने पानी को तुरन्त उबाल लेना चाहिए ।
3 . अग्नि शुद्धि - ईंधन देख - शोधकर उपयोग करना चाहिए ।
4. कर्ता शद्धि - भोजन बनाने वाला स्वस्थ हो तथा नहा धोकर शुद्ध कपड़े पहने हो , नाखन बड़े न हो , इत्र, नेल पॉलिस , लिपिस्टिक , पाउडर इत्यादि न लगावें , रेशमी साडी एवं काले रंग , ऊनी व गीला तथा गन्दा कपड़ा । पहनें , अंगुली बगैरह कट जाने पर खून का स्पर्श खाद्य वस्तओं से न हो , गर्मी में पसीना का स्पर्श न हो . पसीना खाद्य वस्तुओं में न गिरे ।
( 2 ) क्षेत्र शुद्धि - आहार का स्थान स्वच्छ व शुद्ध होना क्षेत्र शुद्धि है ।
1 . प्रकाश शुद्धि - रसोई में पर्याप्त सूर्य का प्रकाश रहता हो ।
2 . वायु शुद्धि - रसोई में शुद्ध हवा का आवागमन हो ।
3 . स्थान शुद्धि - आवागमन का सार्वजनिक स्थान न हो , जाले न हो , स्वच्छ धुला हुआ होना चाहिए , कच्चे । मकानों में चंदोबा होना आवश्यक है ।
4 . दुर्गधता से रहित - हिंसादिक कार्य न होता हो , आसपास मांस - मछली की दुकान न हो , कत्लखाना न हो , किसी प्रकार की बदबू न आती हो ।
( 3 ) काल शुद्धि - योग्य समय का होना ।
1 . ग्रहण काल शुद्धि - चन्द्र ग्रहण , सूर्य ग्रहण का काल न हो ।
2 . शोक काल शुद्धि - शोक , दु : ख अथवा मरण का काल न हो ।
3 . रात्रि काल शुद्धि - रात्रि का समय न हो ।
4 . प्रभावना काल शुद्धि - धर्म प्रभावना अर्थात् उत्सव का काल न हो ।
( 4 ) भाव शुद्धि - परिणामों की शुद्धि का होना ।
1 . वात्सल्य भाव - पात्र और धर्म के प्रति वात्सल्य होना ।
2 . करुणा भाव - सब जीवों एवं पात्रों के ऊपर दया का भाव ।
3 . विनय भाव - पात्र के प्रति विणय के भावों का होना ।
4 . दान भाव - कषाय रहित और हर्ष सहित वस्तु को हितकारी भाव से देना । प्रत्येक श्रावक को सोलह प्रकार की शुद्धि को जानकर आहार तैयार करके देना चाहिए ।
अभ्यास प्रश्न
1 . चौका की परिभाषा लिखिए ।
2 . सोलह प्रकार की शुद्धि के नाम बताइए ।
3 . जल शुद्धि से आप क्या समझते हैं ?
4 . भाव शुद्धियों के भेद समझाइये ।
5 . इस पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?