द्रव्य
द्रव्य का लक्षण – जिसमें गण और पर्याय होते हैं , उसे द्रव्य कहते हैं अथवा जिसमें उत्पाद , व्यय और । प्रौव्य होते हैं , उसे द्रव्य कहते हैं ।द्रव्य के भेद - जीव , पुद्गगल , धर्म , अधर्म , आकाश और काल ये छह द्रव्य हैं । इनमें जीव द्रव्य को छोड़कर पाँच द्रव्य अजीव हैं ।
जीव द्रव्य - जिसमें जानने - देखने की शक्ति होती है , उसे जीव कहते हैं । जैसे - देव , मनुष्य , नारकी . पशु आदि ।
पुद्गगल द्रव्य - जिसके परमाणु मिलते और बिखरते हैं अथवा जिसमें स्पर्श , रस , गन्ध और वर्ण होता है , उसे पुद्गगल कहते हैं । जैसे पुस्तक , कलम , परमाणु , गोली , पारा आदि ।
पुद्गगल के भेद - परमाणु और स्कन्ध ये दो पुद्गगल के भेद हैं , अथवा सूक्ष्म और स्थूल ये दो भी पुद्गगल के भेद हैं ।
परमाणु - पुद्गल के सबसे छोटे ( अविभागी ) टुकड़े को परमाण या अणु कहते हैं । वह इतना छोटा ( वारोक ) होता है कि रूपवान ( रूपी या मूर्तिक ) होने पर भी हमें दिखाई नहीं देता ।
स्कन्ध - दो या दो से अधिक मिले हुए पुद्गल परमाणुओं को स्कन्ध कहते हैं । जैसे - गोलियां , चूरण , चटनी आदि ।
पुद्गगल द्रव्य की पर्याय - शब्द , बन्ध , स्थूलता , सूक्ष्मता , आकार , हिस्सा , अन्धकार , परछाई , प्रकाश , चांदनी और धूप ये सब पुद्गगल द्रव्य की पर्यायें हैं ।
धर्म द्रव्य - जो द्रव्य स्वयं चलते हुए जीव और पुद्गलों को चलने या उड़ने में उदासीन रूप से मदद करता है , उसे धर्मद्रव्य कहते हैं । जैसे जल मछली को चलने तथा हवा पतंग को उड़ने में सहायक होती है । यदि धर्मद्रव्य नहीं होता तो जीव और पुद्गल चल नहीं सकते ।
अधर्म द्रव्य - जो द्रव्य स्वयं ठहरते हुए जीव और पुद्गलों को ठहरने में उदासीन रूप से सहायक होता है , वह अधर्मद्रव्य कहलाता है । जैसे वृक्ष की छाया थके हुये मुसाफिर को ठहरने में सहायक होती है । यदि अधर्मद्रव्य नहीं होता तो जीव और पुद्गल ठहर नहीं सकते ।
आकाश द्रव्य - जो द्रव्य समस्त द्रव्यों को ठहरने के लिये स्थान देता है , उसे आकाशद्रव्य कहते हैं । । यदि आकाश द्रव्य नहीं होता तो किसी वस्तु को रहने के लिये जगह नहीं मिलती । लोकाकाश ( लोक ) और अलोकाकाश ( अलोक ) ये दो आकाश द्रव्य के भेद हैं ।
लोकाकाश - जितने स्थान में जीव , पदगल , धर्म , अधर्म , आकाश और काल ये छहों द्रव्य रहती हैं , उतने । आकाश या स्थान को लोकाकाश या लोक कहते हैं । '
अलोकाकाश - जिस स्थान में केवल आकाश ही आकाश है , अन्य कोई द्रव्य नहीं है . उसे अलीकाका या अलोक कहते हैं ।
काल द्रव्य - अपनी - अपनी पर्याय रूप से स्वयं परिणमित होते हुए जीवादिक द्रव्यों के परिणमन में जो निमित्त हो , उसे कालद्रव्य कहते हैं ।
निश्चयकाल और व्यवहारकाल ये दो कालद्रव्य के भेद हैं ।
निश्चय काल - जो स्वयं पलटता है तथा स्वयं पलटते हुए अन्य द्रव्यों के पलटने ( परिणमन करने ) में कम्हार के चाक की कील के समान सहायक होता है , उसे निश्चयकाल कहते हैं ।
व्यवहार काल - घड़ी , घण्टा , दिन , सप्ताह , पक्ष और मास आदि को व्यवहारकाल कहते हैं ।
विशेष ---
1 . बहुप्रदेशी द्रव्य को अस्तिकाय कहते हैं । कालद्रव्य अस्तिकाय नहीं है , क्योंकि उसका प्रत्येक अण । अलग - अलग रहता है । शेष पाँच द्रव्य एक अणु से अधिक जगह घेरते हैं , इससे वे अस्तिकाय हैं ।
2 . धर्म और अधर्म द्रव्य , जीव तथा पुद्गल को प्रेरित कर नहीं चलाते या ठहराते हैं , किन्तु जब वे चलते या ठहरते हैं तब उनको मदद अवश्य देते हैं ।
3 . ये छह द्रव्य समस्त लोक में व्याप्त हैं , फिर भी एक दूसरे के रहने में बाधक नहीं होते ।
4 . पुद्गल द्रव्य को छोड़कर शेष द्रव्य दिखाई नहीं देते क्योंकि वे रूप रहित ( अरूपी ) या अमूर्तिक हैं ।
5 . धर्म , अधर्म और आकाश ये तीनों द्रव्य एक - एक ही हैं । इनके हिस्से या भेद नहीं होते ।
6 . धर्म और अधर्म से यहाँ पुण्य और पाप नहीं समझना , किन्तु षड्द्रव्यों के अन्तर्गत द्रव्ये समझना चाहिए । अन्यत्र धर्म और अधर्म का अर्थ शुभाशुभ कर्म का फल पुण्य और पाप जानना चाहिए ।
अभ्यास प्रश्न
1 . द्रव्य किसे कहते हैं ?
2 . छह द्रव्य के नाम बताओ ।
3 . पुद्गल द्रव्य की पर्याय बताइए ।
4 . धर्म द्रव्य जीव और पुदगल को किस प्रकार की सहायता देता है ?
5 अलोकाकाश में कौन - कौन से द्रव्य रहते हैं ?