तत्त्व एवं पदार्थ
तत्त्व
जिनके जानने या श्रद्धान करने से हमें अपने आत्मा के सच्चे हित का ज्ञान हो सके और हम अपनी आत्मा । को पवित्र कर सकें , ऐसे वस्तु के स्वभाव को तत्त्व कहते हैं । तत्त्वों के भेद जीव , अजीव , आस्त्रव , बन्ध , संवर , निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व हैं , इनमें पुण्य और पाप मिला देने से नौ पदार्थ हो जाते हैं । जीव - जिसमें चेतना पायी जाती है , उसे जीव कहते हैं । । अजीव - जिसमें चेतना नहीं पायी जाती है , उसे अजीव कहते हैं । आस्त्रव - रागद्वेष आदि भावों के द्वारा आत्मा में आने वाले कर्मों के द्वार को आरव कहते हैं । बन्ध - रागद्वेष आदि भावों के द्वारा आये हुए कर्मों का आत्मा के साथ दूध और जल के समान मिलकर एकमेक हो जाना , बन्ध कहलाता है । संवर - आस्रव का न होना अर्थात् आते हए कर्मों का रुकना , संवर कहलाता है । निर्जरा - आल्मा के साथ बद्ध कर्मों का एकदेश ( थोड़ा भाग ) क्षय हो जाना , निर्जरा कहलाता है । मोक्ष - ज्ञानावरणादि आठों कर्मों का क्षय होकर आत्मा का सर्वथा शुद्ध हो जाना , मोक्ष कहलाता सात तत्त्वों का उदाहरण जैसे एक नाव है वह अजीव है , उसमें बैठे व्यक्ति जीव तत्त्व हैं । नाव में एक छेद है , उस छेद से पानी अन्दर नाव में आ रहा है , यह जो पानी आने का द्वार है यही आस्त्रव है , और पानी का नाव में एकत्रित होना बन्ध है , अब नाविक के द्वारा नाव डूब जाने के भय से पानी को रोकने के लिए छिद्र को बन्द कर देना संवर है , और फिर अन्दर भरा हुआ पानी धीरे - धीरे निकाला जा रहा है यही निर्जरा है , और जब सारा पानी निकाल दिया , तब नाव पूर्ण हल्की हो गयी हैं यही मोक्ष है । शरीर भी एक नाव है , यह अजीव तत्त्व है , आत्मा जीव तत्त्व है , शुभ अशुभ कर्मों का आना आस्त्रव आये हये कर्मों का आत्मा के साथ एकमेक होना बंध है , मन वचन काय की चंचलता को रोकना संवर है , तप । के द्वारा कर्मों का आत्मा से एक देश छूट जाना निर्जरा है और कर्मों से आत्मा का पूर्ण रूप से अलग हो जाना । यही मोक्ष है ।
पदार्थ का लक्षण और भेद जिसमें तत्त्व पाया जाता है , उसे पदार्थ कहते हैं । सात तत्त्वों में पुण्य तथा पाप मिलाकर नौ पदार्थ होते हैं । पुण्य : जिससे प्राणी को इष्ट वस्तु की प्राप्ति तथा सुखदायक सामग्री प्राप्त होती है उसे पुण्य कहते हैं । जैसे - सुपुत्र की प्राप्ति , व्यापार में लाभ और उच्च पद की प्राप्ति ये पुण्य के उदय से होते हैं । धर्म पालन करना , पूजन करना , दान देना , शिक्षा प्रचार , परोपकार आदि पुण्य संचय के कारण हैं । पाप : जिससे प्राणी को अनिष्ट वस्तु और दुःखदायक सामग्री प्राप्त होती है उसे पाप कहते हैं । जैसे पत्र मर जाना , चोरी हो जाना , रोग हो जाना आदि पाप के उदय से होते हैं । हिंसा करना , झुठ बोलना , चोरी करना , परिग्रह रखना , परनिन्दा करना , किसी का बरा विचारना , जआ खेलना आदि खराब कार्य पाप संचय के कारण हैं । अभ्यास प्रश्न 1 . तत्त्व किसे कहते हैं ? 2 . तत्त्वों के कितने भेद हैं ? नाम लिखो । 3 . जीव और अजीव तत्त्व में क्या अन्तर है ? 4 . आस्रव और संवर को उदाहरण सहित समझाइए । 5 . निर्जरा और मोक्ष में क्या अन्तर है ? छळछ परछाछ ( 45 )
जिनके जानने या श्रद्धान करने से हमें अपने आत्मा के सच्चे हित का ज्ञान हो सके और हम अपनी आत्मा । को पवित्र कर सकें , ऐसे वस्तु के स्वभाव को तत्त्व कहते हैं । तत्त्वों के भेद जीव , अजीव , आस्त्रव , बन्ध , संवर , निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व हैं , इनमें पुण्य और पाप मिला देने से नौ पदार्थ हो जाते हैं । जीव - जिसमें चेतना पायी जाती है , उसे जीव कहते हैं । । अजीव - जिसमें चेतना नहीं पायी जाती है , उसे अजीव कहते हैं । आस्त्रव - रागद्वेष आदि भावों के द्वारा आत्मा में आने वाले कर्मों के द्वार को आरव कहते हैं । बन्ध - रागद्वेष आदि भावों के द्वारा आये हुए कर्मों का आत्मा के साथ दूध और जल के समान मिलकर एकमेक हो जाना , बन्ध कहलाता है । संवर - आस्रव का न होना अर्थात् आते हए कर्मों का रुकना , संवर कहलाता है । निर्जरा - आल्मा के साथ बद्ध कर्मों का एकदेश ( थोड़ा भाग ) क्षय हो जाना , निर्जरा कहलाता है । मोक्ष - ज्ञानावरणादि आठों कर्मों का क्षय होकर आत्मा का सर्वथा शुद्ध हो जाना , मोक्ष कहलाता सात तत्त्वों का उदाहरण जैसे एक नाव है वह अजीव है , उसमें बैठे व्यक्ति जीव तत्त्व हैं । नाव में एक छेद है , उस छेद से पानी अन्दर नाव में आ रहा है , यह जो पानी आने का द्वार है यही आस्त्रव है , और पानी का नाव में एकत्रित होना बन्ध है , अब नाविक के द्वारा नाव डूब जाने के भय से पानी को रोकने के लिए छिद्र को बन्द कर देना संवर है , और फिर अन्दर भरा हुआ पानी धीरे - धीरे निकाला जा रहा है यही निर्जरा है , और जब सारा पानी निकाल दिया , तब नाव पूर्ण हल्की हो गयी हैं यही मोक्ष है । शरीर भी एक नाव है , यह अजीव तत्त्व है , आत्मा जीव तत्त्व है , शुभ अशुभ कर्मों का आना आस्त्रव आये हये कर्मों का आत्मा के साथ एकमेक होना बंध है , मन वचन काय की चंचलता को रोकना संवर है , तप । के द्वारा कर्मों का आत्मा से एक देश छूट जाना निर्जरा है और कर्मों से आत्मा का पूर्ण रूप से अलग हो जाना । यही मोक्ष है ।
पदार्थ का लक्षण और भेद जिसमें तत्त्व पाया जाता है , उसे पदार्थ कहते हैं । सात तत्त्वों में पुण्य तथा पाप मिलाकर नौ पदार्थ होते हैं । पुण्य : जिससे प्राणी को इष्ट वस्तु की प्राप्ति तथा सुखदायक सामग्री प्राप्त होती है उसे पुण्य कहते हैं । जैसे - सुपुत्र की प्राप्ति , व्यापार में लाभ और उच्च पद की प्राप्ति ये पुण्य के उदय से होते हैं । धर्म पालन करना , पूजन करना , दान देना , शिक्षा प्रचार , परोपकार आदि पुण्य संचय के कारण हैं । पाप : जिससे प्राणी को अनिष्ट वस्तु और दुःखदायक सामग्री प्राप्त होती है उसे पाप कहते हैं । जैसे पत्र मर जाना , चोरी हो जाना , रोग हो जाना आदि पाप के उदय से होते हैं । हिंसा करना , झुठ बोलना , चोरी करना , परिग्रह रखना , परनिन्दा करना , किसी का बरा विचारना , जआ खेलना आदि खराब कार्य पाप संचय के कारण हैं । अभ्यास प्रश्न 1 . तत्त्व किसे कहते हैं ? 2 . तत्त्वों के कितने भेद हैं ? नाम लिखो । 3 . जीव और अजीव तत्त्व में क्या अन्तर है ? 4 . आस्रव और संवर को उदाहरण सहित समझाइए । 5 . निर्जरा और मोक्ष में क्या अन्तर है ? छळछ परछाछ ( 45 )